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Friday, March 19, 2021

हम देखेंगे...

हम देखेंगे
लाज़िम है कि हम भी देखेंगे
वो दिन कि जिसका वादा है
जो लोह-ए-अज़ल[1] में लिखा है
जब ज़ुल्म-ओ-सितम के कोह-ए-गरां [2]
रुई की तरह उड़ जाएँगे
हम महकूमों[3] के पाँव तले
ये धरती धड़-धड़ धड़केगी
और अहल-ए-हकम[4] के सर ऊपर
जब बिजली कड़-कड़ कड़केगी
जब अर्ज-ए-ख़ुदा के काबे से
सब बुत[5] उठवाए जाएँगे
हम अहल-ए-सफ़ा[6], मरदूद-ए-हरम[7]
मसनद पे बिठाए जाएँगे
सब ताज उछाले जाएँगे
सब तख़्त गिराए जाएँगे

बस नाम रहेगा अल्लाह[8] का
जो ग़ायब भी है हाज़िर भी
जो मंज़र[9] भी है नाज़िर[10] भी
उट्ठेगा अन-अल-हक़[11] का नारा
जो मैं भी हूँ और तुम भी हो
और राज़ करेगी खुल्क-ए-ख़ुदा[12]
जो मैं भी हूँ और तुम भी हो

शब्दार्थ

  1. विधि के विधान
  2. घने पहाड़
  3. रियाया या शासित
  4.  सताधीश
  5.  सत्ताधारियों के प्रतीक पुतले
  6. साफ़ सुथरे लोग
  7. धर्मस्थल में प्रवेश से वंचित लोग
  8. ईश्वर
  9. दृश्य
  10. देखने वाला
  11. मैं ही सत्य हूँ या अहम् ब्रह्मास्मि
  12. आम जनता

Wednesday, March 17, 2021

गुलों में रंग भरे...

गुलों में रंग भरे बाद-ए-नौ-बहार चले
चले भी आओ कि गुलशन का कारोबार चले

क़फ़स उदास है यारो सबा से कुछ तो कहो
कहीं तो बहर-ए-ख़ुदा आज ज़िक्र-ए-यार चले

कभी तो सुब्ह तिरे कुंज-ए-लब से हो आग़ाज़
कभी तो शब सर-ए-काकुल से मुश्क-बार चले

बड़ा है दर्द का रिश्ता ये दिल ग़रीब सही
तुम्हारे नाम पे आएँगे ग़म-गुसार चले

जो हम पे गुज़री सो गुज़री मगर शब-ए-हिज्राँ
हमारे अश्क तिरी आक़िबत सँवार चले

हुज़ूर-ए-यार हुई दफ़्तर-ए-जुनूँ की तलब
गिरह में ले के गरेबाँ का तार तार चले

मक़ाम 'फ़ैज़' कोई राह में जचा ही नहीं
जो कू-ए-यार से निकले तो सू-ए-दार चले