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Saturday, May 9, 2020

क्यों करें हम...

नया एक रिश्ता पैदा क्यों करें हम
बिछड़ना है तो झगडा क्यों करें हम

ख़ामोशी से अदा हो रस्मे-दूरी
कोई हंगामा बरपा क्यों करें हम

ये काफी है कि हम दुश्मन नहीं हैं
वफादारी का दावा क्यों करें हम

वफ़ा इखलास कुर्बानी मोहब्बत
अब इन लफ़्ज़ों का पीछा क्यों करें हम

हमारी ही तमन्ना क्यों करो तुम
तुम्हारी ही तमन्ना क्यों करें हम

किया था अहद जब लम्हों में हमने
तो सारी उम्र इफा क्यों करें हम

उठा कर क्यों न फेंकें सारी चीज़ें
फकत कमरों में टहला क्यों करें हम

नहीं दुनिया को जब परवाह हमारी
तो दुनिया की परवाह क्यों करें हम

बरहना हैं सरे बाज़ार तो क्या
भला अंधों से परा क्यों करें हम

हैं बाशिंदे इसी बस्ती के हम भी
सो खुद पर भी भरोसा क्यों करें हम

पड़ी रहने दो इंसानों की लाशें
ज़मीं का बोझ हल्का क्यों करें हम

ये बस्ती है मुसलामानों की बस्ती
यहाँ कारे-मसीहा क्यों करें हम
....... जौन एलिया

Saturday, May 2, 2020

अब के हम बिछड़े

अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिले
जिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिले

ढूंढ उजड़े हुए लोगों में वफ़ा के मोती
ये खज़ाने तुझे मुमकिन है ख़राबों में मिले
अब के हम बिछड़े...

तू खुदा है, न मेरा इश्क फरिश्तों जैसा
दोनों इन्सां हैं तो क्यों इतने हिजाबों में मिले
अब के हम बिछड़े...

ग़म-ए-दुनिया भी ग़म-ए-यार में शामिल कर लो
नशा बढ़ता है शराबे जो शराबों में मिले
अब के हम बिछड़े...

अब न मैं हूँ, न तू है, न वो माज़ी है फ़राज़
जैसे दो साये तमन्ना के सराबों में मिले
अब के हम बिछड़े...